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अपने तईं

समकालीन कवियों में विजय कुमार कुछ गिने-चुने उन कवियों में से एक रहे हैं, जिन्होंने न सिर्फ महत्वपूर्ण

कविताएँ लिखी हैं बल्कि समकालीन कविता के मूल्यांकन द्वारा समीक्षा के मानदंड भी स्थापित किए हैं। एक समर्थ कवि,

एक बेबाक समीक्षक, एक गंभीर विचारक तथा विश्व-कविता से परिचित कराने वाला श्रेष्ठ अनुवादक और इन सबके

बावजूद मित्रों के लिए कुछ भी कर गुजरने वाला एक सहज संवेदनशील व्यक्ति एक साथ मिलना शायद ही संभव हो

लेकिन विजय कुमार को नजदीक से जानने वाले उनके व्यक्तित्व की इन सच्चाइयों से भली-भाँति परिचित हैं।

 

मेरी उनसे मुलाक़ात साहित्यिक गोष्ठियों में लगभग तीन दशकों से लगातार होती रही लेकिन घनिष्ठता उन कवि मित्रों और

साहित्यिकों के चाय के अड्डों से हुई, जहाँ हम घंटों बैठे आज के समय, साहित्य और समाज के विभिन्न मुद्दों पर चर्चा

करते। यहीं मैंने जाना कि विजय जी अपने पूर्वसंचित पर ही बहुत अधिक भरोसा नहीं करते बल्कि लगातार साहित्य-जगत

से अपडेट होते रहते हैं। उनकी वैचारिक प्रतिबद्धता अपनी जगह है लेकिन अपने साथी कवियों के प्रति उनकी

संवेदनशीलता लगातार मुझे प्रभावित करती रही। राम पदरथ पांडेय, भगवत लाल उत्पल, राधेश्याम उपाध्याय,

राज सुमन आदि को निरंतर उन्होंने प्रोत्साहित ही नहीं किया बल्कि इस बात का भी प्रयास किया कि उनकी

रचनाएँ प्रकाशित हों और उनका सही मूल्यांकन भी हो। 

विजय कुमार की समकालीन कविता में अपनी अलग पहचान रही है लेकिन उनके साहित्यिक अवदान को सही ढंग से पहचाना नहीं गया है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में उनकी पुस्तकों की समीक्षाएँ तो मिल जाती हैं लेकिन उनके कवि, समीक्षक, विचारक और अनुवादक रूप का  व्यवस्थित ढंग से कहीं मूल्यांकन नहीं किया गया है। समीचीन के विशेषांकों की परंपरा में जब हमने उनकी रचनाओं पर केन्द्रित अंक निकालने का निश्चय किया और इस संदर्भ में उनसे चर्चा की तो उन्होने बड़ा संकोच प्रकट किया लेकिन जैसे-जैसे हमने कुछ अन्य साहित्यिक मित्रों को अपनी योजना बताई तो हमारा विश्वास दृढ़ निश्चय में बदलता गया।

 

मैं विजय कुमार के लेखकीय अवदान का सम्पूर्ण विवेचन किए जाने का दावा तो नहीं कर सकता लेकिन प्रयास यही रहा है कि उनके कवि व्यक्तित्व, विचारक और समीक्षक रूप का समुचित आकलन एक जगह उपलब्ध हो सके। इसके लिए कुछ पूर्व प्रकाशित समीक्षाओं का भी सहारा लिया गया है। इसके अतिरिक्त बहुत से साहित्यिकों ने हमारे अनुरोध पर आलेख लिखे हैं। उन सबके प्रति आभार प्रकट करना नाकाफी होगा। आशा है, यह प्रयास विजय कुमार को समझने और मूल्यांकित करने में सहयोगी हो सकेगा। समीचीन को आप सब लेखकों और पाठकों का स्नेह इसी तरह मिलता रहेगा, इसी उम्मीद के साथ अब यह अंक आपके सामने है।

अस्तु।

 

- डॉ. सतीश पांडेय

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